हर रात की सुबह हैं

हर रात की सुबह हैं
हर शाम की रात हैं
हर बात की जुबाँ हैं
हर जुबाँ पर बात हैं

हर दिन यूँ बरबाद हैं
बिन मौसम यें बरसात हैं
दबे हुये कही जज्बात हैं
फिर कोई तो बात हैं

साँसों में कोई महक हैं
हर तरफ ये बहस हैं
पायलों की ये छनक हैं
दिल को ये भनक हैं

तारों की जो चमक हैं
चिड़ियों की जो चहक हैं
बात इतनी सहज हैं
फिर क्यूँ ये उठापटक हैं

आँखों में जो नमी हैं
कहीं कुछ तो कमी हैं
जाने क्यूँ यकीं हैं
सब कुछ यहीं हैं

राहों पर सजी हैं
ज़िन्दगी हर कही हैं
हर तरफ बसी हैं
रुक गयी तो यहीं हैं

बेवजह बदनाम हैं
कैसी ये मुस्कान हैं
बिताने को अब रात हैं
छोटी सी एक बात हैं

टिमटिम अब आकाश हैं
इतने में क्यूँ निराश हैं
कुछ देर का अवकाश हैं
आना फिर से प्रकाश हैं