वो ख्याब मेरे
जो रह गए अधूरे
इजाजत खुदा की हो
तो होगे कभी वो पूरे
मुझे मिलते हैं
रात में अक्सर सारे
कुछ कहते हैं वो सब
दिल को लगते हैं प्यारे
दिन भर की उधेड़-बुन
पल भर में हो जाती दूर
नशा शराब का भी क्या
जो हो ख्याबों में चूर
नहीं होते हैं वो खफा
फिजूल की बातों से मेरे
होंगे कही भी नहीं
इतने आशिक मेरे
भोर पहर से पहले
फिर आने का वादा करके
विदाई वो लिया करते
मन में मेरे उमंग भर के
ख्याब तो बस ख्याब है
ज़िन्दगी के उतार-चढाव नहीं
दोस्त तक बदल जाते है
पर ख्याबों सा कोई दोस्त नहीं
ज़िन्दगी में अजीब हैं
रातों में ख्याबो से मिलना
मगर ख्याबो के बिना
संभव नहीं ज़िन्दगी से मिलना
ख्याबो की अहमियत है
सच से परे हो मगर
मंजिल पाने के लिये
ज़िन्दगी की सच्ची डगर