था खून इधर भी बिखरा
था खून उधर भी बिखरा
उन पर था मौत का पहरा
वीरानें में कोई देखें कैसे
थे जख्म इधर भी
थे जख्म उधर भी
मरहम लगा लो कितना भी
जख्म दिलों के कोई देखें कैसे
थी कुर्बानियाँ इधर भी
थी कुर्बानियाँ उधर भी
हार गये थे इन्साँ सभी
ये भी कोई कबूलें कैसे
थी चीखें इधर भी
थी चीखें उधर भी
दीवारें थी इतनी ऊँचीं
सुने भी तो कोई सुने कैसे
थी लाशें इधर भी
थी लाशें उधर भी
जशन जीत का हो कही भी
सरहदों के पार कोई देखें कैसे
अमन रहें इस पार भी
अमन रहें उस पार भी
सरहदें चाहें जिधर रहें
दिल से दुआ यें निकलती रहें
इक दीवार गिरी थी कभी
इक दीवार गिरानी हैं अभी
खाई कितनी भी गहरी रहें
जतन यही हो कम से कम रहें
न गिरा पाना दीवारे कभी
तो दरवाजें खुलें रखना सभी
दिलों से दिल मिलते रहें
कही तो इंसानियत की जीत रहें
पल
Posted by
V!P!N
on Friday, July 2, 2010
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आपके आने पर हमने
गम सारे भुला दिये
जो बुझ गए थे दीयें
वो सारे जला दिये
चाँद ने की थी शिकायत
शमाँ वो इतना रौशन था
मैंने भी की थी बगावत
मेरा चाँद उस से भी रौशन था
वो दूर से आयी थी
उसकी आहट में जादू था
क़रीब इतने वो आयी थी
मेरा भी दिल बेकाबू था
खामोश सी थी निगाहें
कुछ कह रही थी वो नजर
सब थम गया हो जैसे
इस दिल पे था वो असर
मेरे हाथों में था उसका हाथ
वो रात क़यामत थी
उसके होंठों पे थी मेरी बात
वो बात कयामत थी
थम जाना था साँसों को
बेचैनी उस पल में थी
मिल जाती मुझको जन्नत
आरजू उस पल ये थी
कहे भी तो कहे कैसे
बात जुबाँ तक आयी थी
रुके भी तो रुके कैसे
वो बस सुबह तक आयी थी
इक झटके में सब छूट गया
मेरी आँखों का सपना था
कुछ पल के लिए ही सही
पल वो मेरा अपना था
गम सारे भुला दिये
जो बुझ गए थे दीयें
वो सारे जला दिये
चाँद ने की थी शिकायत
शमाँ वो इतना रौशन था
मैंने भी की थी बगावत
मेरा चाँद उस से भी रौशन था
वो दूर से आयी थी
उसकी आहट में जादू था
क़रीब इतने वो आयी थी
मेरा भी दिल बेकाबू था
खामोश सी थी निगाहें
कुछ कह रही थी वो नजर
सब थम गया हो जैसे
इस दिल पे था वो असर
मेरे हाथों में था उसका हाथ
वो रात क़यामत थी
उसके होंठों पे थी मेरी बात
वो बात कयामत थी
थम जाना था साँसों को
बेचैनी उस पल में थी
मिल जाती मुझको जन्नत
आरजू उस पल ये थी
कहे भी तो कहे कैसे
बात जुबाँ तक आयी थी
रुके भी तो रुके कैसे
वो बस सुबह तक आयी थी
इक झटके में सब छूट गया
मेरी आँखों का सपना था
कुछ पल के लिए ही सही
पल वो मेरा अपना था