आज एक सपना टूटा
मैं एक और देखूगां
हर बार हैं ये टूटा
मैं बार-बार देखूगां
वो हो रही मुझसे जुदा
मैं कैसे दिल को समझाऊ
हैं खुदा मुझसे रूठा
मैं कैसे उसको मनाऊ
दिन में सहमा रहता हूँ
रात को चाँद होता हैं
सपनो में खोया रहता हूँ
तेरा ही दीदार होता हैं
मैं जाम पीता नहीं हूँ
वों नजरे पिला जाती हैं
वों मुझसे दूर नहीं हैं
ये अहसास दिला जाती हैं
मैं करता रहूँगा इकरार
वों तो करेंगे इन्कार
यूँ ही बढता हैं प्यार
दिल को मेरे हैं ऐतबार
रस्ते अलग हो जायेंगे
ऐसा होना तो नहीं था
वों मुझसे दूर हो जायेंगे
ऐसा कभी सोचा नहीं था
एक आस पूरी हो जाये
और ये वक्त बदल जाये
फिर एक करिश्मा हो जाये
मेरा उसका मिलन हो जाये
बिछुड़ कर जो हैं मिले
वों किस्मत वाले हैं
जरुरी नहीं किं हम मिले
हम तो दिलवाले हैं
जीना सीख ले
Posted by
V!P!N
on Wednesday, May 12, 2010
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तू रोना नहीं
हँसना सीख ले
ज़िन्दगी आसान तो नहीं
तू जीना सीख ले
हारा नहीं इन्सां अब तक
तू सहना सीख ले
मुश्किलें तो आयेंगी
तू लड़ना सीख ले
तुम अकेले तो नहीं
नजर उठा के देख ले
हर शख्स यहाँ घायल हैं
तू करीब जा के देख ले
मुश्किलों को पसीने आयेंगे
अगर तू मुस्कुराना सीख ले
और आँसुओ को कफन कर
आँखों में दफन करना सीख ले
हँसना सीख ले
ज़िन्दगी आसान तो नहीं
तू जीना सीख ले
हारा नहीं इन्सां अब तक
तू सहना सीख ले
मुश्किलें तो आयेंगी
तू लड़ना सीख ले
तुम अकेले तो नहीं
नजर उठा के देख ले
हर शख्स यहाँ घायल हैं
तू करीब जा के देख ले
मुश्किलों को पसीने आयेंगे
अगर तू मुस्कुराना सीख ले
और आँसुओ को कफन कर
आँखों में दफन करना सीख ले
THe LIFe !!!
Posted by
V!P!N
on Saturday, May 8, 2010
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Comments: (0)
पहाड़ियों को चीरकर
निकलती हैं लहर
न हैं कोई मंजिल
न उसकी कोई डगर
गिरती भी, संभलती भी
जब राह नहीं मिलती हैं
ऊँचाई से डरती नहीं
हवा से बाते करती हैं
बिखरती भी, सिमटती भी
जब चट्टानें रोकती हैं
हौंसला कम होता नहीं
चट्टानें भी टूटती हैं
होती हैं मुश्किल कभी
रास्ते तो बदलती हैं
रुकना उसने सीखा नहीं
कदम-कदम बढ़ती हैं
कभी मंद कभी तेज
गीत ख़ुशी के गाती हैं
छल-छल तो कभी खन-खन
मधुर संगीत सुनाती हैं
वादा खुशहाली का करती हैं
देखो फसल लहलहाती हैं
वरदान उसको मिला हैं
सबकी प्यास बुझाती हैं
कितनी ही शिकायते हैं
वो जीत के हार जाती हैं
ढूढती सागर को
मिल के गुम जाती हैं
सूरज पुकारता उसको
पास उसके तो जाती हैं
मगर बन के वो बादल
पहाड़ों पर जा बरसती हैं
निकलती हैं लहर
न हैं कोई मंजिल
न उसकी कोई डगर
गिरती भी, संभलती भी
जब राह नहीं मिलती हैं
ऊँचाई से डरती नहीं
हवा से बाते करती हैं
बिखरती भी, सिमटती भी
जब चट्टानें रोकती हैं
हौंसला कम होता नहीं
चट्टानें भी टूटती हैं
होती हैं मुश्किल कभी
रास्ते तो बदलती हैं
रुकना उसने सीखा नहीं
कदम-कदम बढ़ती हैं
कभी मंद कभी तेज
गीत ख़ुशी के गाती हैं
छल-छल तो कभी खन-खन
मधुर संगीत सुनाती हैं
वादा खुशहाली का करती हैं
देखो फसल लहलहाती हैं
वरदान उसको मिला हैं
सबकी प्यास बुझाती हैं
कितनी ही शिकायते हैं
वो जीत के हार जाती हैं
ढूढती सागर को
मिल के गुम जाती हैं
सूरज पुकारता उसको
पास उसके तो जाती हैं
मगर बन के वो बादल
पहाड़ों पर जा बरसती हैं