आज फिर से छलके थे
आंखों में आँसू मेरे
मुश्किलों में मुस्कुरायाँ मैंने
क्यूँ रोक न पाया आज मैं आँसू मेरे
मन्जिले जब भी मिली हैं
जश्न मनाये हर बार मैंने
पर मैं न समझ पाया
क्यूँ खुशियों में शरीक आँसू मेरे
बहुत अजीब सी खुशियाँ हैं
इन खुशियों में कुछ कमी सी हैं
क्यूँ चलता रहा सारी उम्र मैं
जैसे रास्ते मुझे पता ही नहीं हैं
यूँ तो हैं अहसास दूरी का मुझे
पर हैं हर ख़ुशी अधूरी बिन तेरे
क्यूँ आते हो ऐसे करीब मेरे
बन के पलकों में आँसू मेरे
अलविदा
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V!P!N
on Thursday, June 16, 2011
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न कर पायें शिकायत
वो अलविदा जब कह गयें
रोक न पायें जब उनको
बस आँसू रोकते रह गयें
मैं पूँछ लूँ उस खुदाँ से
कही पे अगर मिल जायें
क्यूँ बनाते हो मोहरें
बस केवल मिटानें के लिये
अगर मिटाना हीं हैं
तो क्यूँ यादें मिटातें नहीं
मिलता नहीं हूँ गैरों से
क्यूँ अपनों से मिलातें नहीं
अगर नियम हैं ये प्रकृति का
तो हताश खुदाँ भीं होंगा
खामोश होकर भीं कहीं
वो खुद से खफा तो होंगा
वो अलविदा जब कह गयें
रोक न पायें जब उनको
बस आँसू रोकते रह गयें
मैं पूँछ लूँ उस खुदाँ से
कही पे अगर मिल जायें
क्यूँ बनाते हो मोहरें
बस केवल मिटानें के लिये
अगर मिटाना हीं हैं
तो क्यूँ यादें मिटातें नहीं
मिलता नहीं हूँ गैरों से
क्यूँ अपनों से मिलातें नहीं
अगर नियम हैं ये प्रकृति का
तो हताश खुदाँ भीं होंगा
खामोश होकर भीं कहीं
वो खुद से खफा तो होंगा
बस कुछ यूँ ही
Posted by
V!P!N
on Saturday, March 12, 2011
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Comments: (2)
लोग कहते हैं
इश्क़ खुदाँ की इबादत हैं
बस कुछ यूँ ही
इश्क़ करने कि आदत हैं
कुछ भर जाते हैं
तो कुछ रह जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
ज़ख्मों से खेल जाते हैं
शरीफों के शहर में
हमदर्द कई मिल जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
धोखा खां जाते हैं
चेहरे वही रहे
पर ईमान बदल जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
इंसान बदल जाते हैं
वादे किये थे
वक्त आने पे मुकर जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
जीने के सहारे टूट जाते हैं
शिकवा क्यूँ करे
जब तकदीर रूठ जाती हैं
बस कुछ यूँ ही
थोड़ी ख़ुशी मिल जाती हैं
रुतबा कम न हो
अगर प्रहार कर जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
दिल पत्थर बन जाते हैं
इबादत खुदा की
हर रोज किया करते हैं
बस कुछ यूँ ही
इश्क़ किया करते हैं
इश्क़ खुदाँ की इबादत हैं
बस कुछ यूँ ही
इश्क़ करने कि आदत हैं
कुछ भर जाते हैं
तो कुछ रह जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
ज़ख्मों से खेल जाते हैं
शरीफों के शहर में
हमदर्द कई मिल जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
धोखा खां जाते हैं
चेहरे वही रहे
पर ईमान बदल जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
इंसान बदल जाते हैं
वादे किये थे
वक्त आने पे मुकर जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
जीने के सहारे टूट जाते हैं
शिकवा क्यूँ करे
जब तकदीर रूठ जाती हैं
बस कुछ यूँ ही
थोड़ी ख़ुशी मिल जाती हैं
रुतबा कम न हो
अगर प्रहार कर जाते हैं
बस कुछ यूँ ही
दिल पत्थर बन जाते हैं
इबादत खुदा की
हर रोज किया करते हैं
बस कुछ यूँ ही
इश्क़ किया करते हैं
मालिक
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V!P!N
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Comments: (0)
राहें जितनी बना ले
मंजिल एक हैं
अंधेरे कितने ही आते रहे
रौशनी एक हैं
दीवारें जितनी बना ले
पर आसमाँ एक हैं
तस्वीरे कितनी ही बना ले
वो पीर एक हैं
खून जितना बहा ले
रंग लाल, एक हैं
दुश्मन कितने ही बना ले
पर फ़रिश्ता एक हैं
क़र्ज़ जितने चुका ले
वो रहनुमा एक हैं
नाम कितने ही पुकार ले
मालिक एक हैं
मंजिल एक हैं
अंधेरे कितने ही आते रहे
रौशनी एक हैं
दीवारें जितनी बना ले
पर आसमाँ एक हैं
तस्वीरे कितनी ही बना ले
वो पीर एक हैं
खून जितना बहा ले
रंग लाल, एक हैं
दुश्मन कितने ही बना ले
पर फ़रिश्ता एक हैं
क़र्ज़ जितने चुका ले
वो रहनुमा एक हैं
नाम कितने ही पुकार ले
मालिक एक हैं