एक दिन समन्दर ने लहरों से पूछा:-
तू मुझमे हो के भी
इतनी बेचैन क्यूँ हो जाती हैं
इतने पास आ के भी
इतनी दूर क्यूँ हो जाती हैं
लहरों ने समन्दर से कहा:-
मेरे जीवन का
मकसद भी तू हैं
मेरी बेचैनी का
कारण भी तू हैं
कितनी ही मुश्किलों से
मैंने तुझको पाया हैं
थमना मेरी फितरत नहीं
थाम मुझको तू पाया हैं
बिन तेरे कैसे
रह सकती हूँ मैं
सिमटकर तुझमें
कैसे बिखर सकती हूँ मैं
होती रहें दूरी जितनी भी
मुझे तुझसे मिल जाना हैं
हर बार इस दूरी से
वो क्षण बार-बार आना हैं
1 comments:
very nice :)
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