उपेक्षित प्रकृति की वेदना


Though we keep on advancing our comfort each day by dazzling waves of technology, but we laid aside out planet and we are bringing perversion to nature. Sooner we realize it, better it would be!

Save our home, the 'Blue Planet'



मैं अविचल हूँ
हूँ सबसे शीतल
तुम जीव श्रेष्ठ
फिर भी हो चंचल

मैं विषम एक-रूप
सर्वत्र शांत-चित्त
तुम समान समगुण
फिर भी हो विभक्त

मैं प्राणदायिनी हूँ
लेकिन स्वाभिमानी
तुम निर्भर मुझ पर
किन्तु हो अभिमानी


मैं कर्तव्यपूर्ण दानी
अब हूँ रक्त रन्जित
तुम लोभी हत्यारे
अपराध से निश्चिन्त


मैं जीवन-चक्र से मुक्त
संकट में मेरा अस्तित्व
प्रगति के विस्मय में
तुम हो रहे पथ-भ्रमित

मैं कारक हूँ जीवन की
मुझ बिन अधूरे सब यत्न हैं
तुम हो सुरक्षित तभी तक
जब तक संतुलित प्रयत्न हैं

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