चिराग जलता हैं

घनघोर अँधेरे के बीच
कही एक चिराग जलता हैं
तूफानों से लड़ता हैं
पर वो चिराग जलता हैं

हैं कही कोई राहगीर
मंजिल के लिये निकलता हैं
राह में काँटे हैं मगर
उम्मीदों का चिराग जलता हैं

हैं वक़्त की साजिश कोई
मुसाफिर यूँ भटकता हैं
सन्नाटो में ही सही
उसके लिये चिराग जलता हैं

हैं किस्मत का कोई छलावा
राही राह यूँ बदलता हैं
रास्ते लम्बे हो जाते हैं मगर
उसके सपनों का चिराग जलता हैं

हैं रात काली अन्धियारी
मुसाफिर कहाँ डरता हैं
कदम कदम मंजिल की ओर
उन राहों पर चिराग जलता हैं

हैं हर कही कोई लूटेरा
पड़ाव दर पड़ाव जो पड़ता है
संभल संभल कर ही मगर
हर पड़ाव पर चिराग जलता हैं

हैं सफ़र को अभिशाप यें
ठोकर बिना कहाँ कोई संभलता हैं
अनन्त काल से अनवरत
हर सफ़र में चिराग जलता हैं

हैं फर्क इंसान और भगवान में
मुश्किलों के बीच इंसान चलता हैं
हर इंसान में भगवान हैं
घर घर में चिराग जलता हैं

1 comments:

RoaD said...

bahoot badhiya bhai

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