अलविदा

न कर पायें शिकायत
वो अलविदा जब कह गयें
रोक न पायें जब उनको
बस आँसू रोकते रह गयें

मैं पूँछ लूँ उस खुदाँ से
कही पे अगर मिल जायें
क्यूँ बनाते हो मोहरें
बस केवल मिटानें के लिये

अगर मिटाना हीं हैं
तो क्यूँ यादें मिटातें नहीं
मिलता नहीं हूँ गैरों से
क्यूँ अपनों से मिलातें नहीं

अगर नियम हैं ये प्रकृति का
तो हताश खुदाँ भीं होंगा
खामोश होकर भीं कहीं
वो खुद से खफा तो होंगा

1 comments:

exploring world said...

very nice :)

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