!T's noT aBouT JusT Dream

वो ख्याब मेरे
जो रह गए अधूरे
इजाजत खुदा की हो
तो होगे कभी वो पूरे

मुझे मिलते हैं
रात में अक्सर सारे
कुछ कहते हैं वो सब
दिल को लगते हैं प्यारे

दिन भर की उधेड़-बुन
पल भर में हो जाती दूर
नशा शराब का भी क्या
जो हो ख्याबों में चूर

नहीं होते हैं वो खफा
फिजूल की बातों से मेरे
होंगे कही भी नहीं
इतने आशिक मेरे

भोर पहर से पहले
फिर आने का वादा करके
विदाई वो लिया करते
मन में मेरे उमंग भर के

ख्याब तो बस ख्याब है
ज़िन्दगी के उतार-चढाव नहीं
दोस्त तक बदल जाते है
पर ख्याबों सा कोई दोस्त नहीं

ज़िन्दगी में अजीब हैं
रातों में ख्याबो से मिलना
मगर ख्याबो के बिना
संभव नहीं ज़िन्दगी से मिलना

ख्याबो की अहमियत है
सच से परे हो मगर
मंजिल पाने के लिये
ज़िन्दगी की सच्ची डगर

2 comments:

RoaD said...

sahi hai bhai, sit ke liye kya khawab sajaye hain

Unknown said...

so this time ye kise dedicated hai?

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