THe LIFe !!!

पहाड़ियों को चीरकर
निकलती हैं लहर
न हैं कोई मंजिल
न उसकी कोई डगर

गिरती भी, संभलती भी
जब राह नहीं मिलती हैं
ऊँचाई से डरती नहीं
हवा से बाते करती हैं

बिखरती भी, सिमटती भी
जब चट्टानें रोकती हैं
हौंसला कम होता नहीं
चट्टानें भी टूटती हैं

होती हैं मुश्किल कभी
रास्ते तो बदलती हैं
रुकना उसने सीखा नहीं
कदम-कदम बढ़ती हैं

कभी मंद कभी तेज
गीत ख़ुशी के गाती हैं
छल-छल तो कभी खन-खन
मधुर संगीत सुनाती हैं

वादा खुशहाली का करती हैं
देखो फसल लहलहाती हैं
वरदान उसको मिला हैं
सबकी प्यास बुझाती हैं

कितनी ही शिकायते हैं
वो जीत के हार जाती हैं
ढूढती सागर को
मिल के गुम जाती हैं

सूरज पुकारता उसको
पास उसके तो जाती हैं
मगर बन के वो बादल
पहाड़ों पर जा बरसती हैं

0 comments:

Post a Comment