सरहदें

था खून इधर भी बिखरा
था खून उधर भी बिखरा
उन पर था मौत का पहरा
वीरानें में कोई देखें कैसे

थे जख्म इधर भी
थे जख्म उधर भी
मरहम लगा लो कितना भी
जख्म दिलों के कोई देखें कैसे

थी कुर्बानियाँ इधर भी
थी कुर्बानियाँ उधर भी
हार गये थे इन्साँ सभी
ये भी कोई कबूलें कैसे

थी चीखें इधर भी
थी चीखें उधर भी
दीवारें थी इतनी ऊँचीं
सुने भी तो कोई सुने कैसे

थी लाशें इधर भी
थी लाशें उधर भी
जशन जीत का हो कही भी
सरहदों के पार कोई देखें कैसे

अमन रहें इस पार भी
अमन रहें उस पार भी
सरहदें चाहें जिधर रहें
दिल से दुआ यें निकलती रहें

इक दीवार गिरी थी कभी
इक दीवार गिरानी हैं अभी
खाई कितनी भी गहरी रहें
जतन यही हो कम से कम रहें

न गिरा पाना दीवारे कभी
तो दरवाजें खुलें रखना सभी
दिलों से दिल मिलते रहें
कही तो इंसानियत की जीत रहें

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